Wednesday, December 10, 2008

इस बार नही !

इस बार नही 
इस बार जब वो छोटी सी बच्ची मेरे पास अपनी खरॉच लेकर आएगी 
मै उसे फू-फू कर नही बहलाऊगा,पनपने दूँगा उसकी टीस को !

इस बार जब मै चेहरॉ पर दर्द लिखा देखूँगा,नही गाऊँगा गीत पीड़ा भुला देने वाले !
दर्द को रिसने दूँगा, उतरने दूँगा अंदर गहरे ,

इस बार मै ना मरहम लगाऊँगा,
ना ही ऊठाऊँगा रुई के फाहे,

और ना ही कहूँगा के तुम आँखे बंद कर लो, गर्दन उधर कर लो मै दवा लगाता हूँ!
दिखने दूँगा सबको खुले नंगे घाव,

इस बार जब उलझने देखूँगा,छ्टपटाहट देखूँगा, नही दौड़ूँगा उलझी डोर लपेटने
उलझने दूँगा जब तक उलझ सके!

इस बार नही... 

इस बार कर्म का हवाला देकर नही उठाऊँगा औज़ार
नही करूँगा फिरसे एक नयी शुरुआत,
नही बनूंगा मिसाल एक कर्मयोगी की,
नही आने दूँगा जिंदगी को आसानीसे पटरी पर,
उतरने दूँगा उसे कीचड़ मे, टेढ़े-मेढ़े रस्तो पर

नही सूखने दूँगा दीवारों पर लगा खून,
हलका नही पड़ने दूँगा उसका रंग,

इस बार नही बनने दूँगा उसे इतना लाचार
के पान की पीक और खून का फ़र्क ही ख़तम हो जाए,

इस बार नही... इस बार घावों को देखना हैं गौर से
थोड़ा लंबे समय तक,
कुछ फ़ासले और उसके बाद हौसले,
कहीं तो शुरुआत करनी ही होगी,
इस बर....यहि तय किया हैं !!!

-By Prasoon Joshi-On 26/11 ;Mumbai attack-A Hurt,Regretful,Indian-

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